आज के समय में स्वस्थ रहने के लिए हमें अक्सर कई चीजों को ध्यान रखना पड़ता है। इनमें से तेल के इस्तेमाल पर अक्सर बहस होती रहती है। आज के समय में जहां हृदय रोग, डायबिटीज और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, उनमें यह बहस छिडना भी वाजिब है, कि कौन सा तेल या घी ज्यादा फायदेमंद है या कौन सा कम नुकसानदायक है। लेकिन आज बहस का मुद्दा यह नहीं है कि आपकी सेहत के लिए कौन सा ऑयल या घी अच्छा है।
बल्कि यह है कि असल में तेल या घी को किस मात्रा तक पकाया जाए ताकि वह नुकसानदायक ना हो। आपको बता दें आमतौर पर घरों में देसी घी, ऑलिव ऑयल, और सरसों का तेल के जरिए ही भोजन पकाया जाता है। ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि तेल कौन सा इस्तेमाल किया जा रहा है इससे जरूरी है कि आप उसे कितना पका रहे हैं। कुल मिलाकर अधिक पका हुआ तेल आपकी समस्याओं को बढ़ा सकता है। आइए जानते हैं भोजन के लिए तेल को कितना पकाया जाना चाहिए।
क्या कहती हैं एक्सपर्ट
आपने अक्सर नोटिस किया होगा कि जब भी आप भोजन पकाने के लिए तेल गर्म करते हैं तो इसमें तुरंत धुआं नहीं निकलता। बल्कि जब आप इसे कुछ समय के लिए गैस पर छोड़ देते हैं तो ही इसमें से धुंआ निकलने लगता है। इसी धुएं पर कई बार विशेषज्ञों ने लोगों को चेताया है। विशेषज्ञों के मुताबिक जरूरत से ज्यादा तेल के गर्म होने या इसके स्मोकिंग पॉइंट तक पकने के बाद यह फायदा नहीं बल्कि नुकसान पहुंचा सकता है। इसी स्मोकिंग प्वाइंट को लेकर टाइम्स नाउ डिजिटल के एक इंटरव्यू में फोर्टिस अस्पताल की चीफ डाइटीशियन रिंकी कुमारी ने हेल्थ पर पड़ने वाले इसके कुछ प्रभाव बताए हैं।
रिंकी का कहना है कि तेल एक नॉन-पोलर केमिकल तत्व है, जो हाइड्रोकार्बन से बने होते हैं और यह हाइड्रोफोबिक और लिफोफीलिक होते हैं। यानी तेल पानी से नहीं मिलते और मोटापे की भी वजह बन सकते हैं। आपको बता दें कि अधिकतर तेल ज्वलनशील होते हैं सतह पर एक्टिव रहते हैं। रूम के तापमान यह सभी तेल अनसैचुरेटेड लिपिड फॉर्म में या लिक्विड फॉर्म में होते हैं। लेकिन जैसे ही इन्हें गर्म किया जाता है तो यह समय के साथ-साथ खराब होने लगते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि समय के साथ इनके पोषक तत्व और फाइटोकेमिकल्स पूरी तरह गायब होने लगते हैं। वहीं जब तेल अधिक गर्म हो जाते हैं तो यह फ्री रेडिकल्स को रिलीज करने लगते हैं जो एक जहरीली गैस को पैदा कर देते हैं।
तेल के अधिक पकने पर क्या होता है
जानकारों के मुताबिक जब तेल अधिक पकने लगता है तो उससे निकलने वाली गैस को साफ देखा जा सकता है। यह निकलती गैस एक प्रमाण होता है कि तेल अब डिग्रेड होना शुरू हो चुका है। दरअसल इस दौरान तेल से कुछ गैस और फ्री रेडिकल्स का निर्माण होने लगता है जो मानव शरीर के लिए बहुत नुकसानदायक होती हैं। इसके अलावा तेल के अधिक पकाए जाने पर यह डीकंपोज होने लगता है और पोषक तत्व एवं स्वाद दोनों ही खोने लगता है। साथ ही यह ऐसे केमिकल्स को बढ़ावा दे देता है जो कैंसर के लिए उत्तरदायी होते हैं।
ज्यादा गरम होने पर बन सकता है जहरीला
अलावा विशेषज्ञ का कहना है कि ऑयल के डीग्रेड होने पर सबसे पहले हाइड्रोपराक्साइड पैदा होता है और इसके बाद यह एल्डिहाइड को बढ़ावा देता है। ज्ञात हो कि एल्डिहाइड एक जहरीला केमिकल है, जिसे कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के मार्कर के रूप में अंकित किया गया है। इसके अलावा यही आगे चलकर डिजनरेटिव डिसऑर्डर की वजह बनता है। साथ ही विशेषज्ञों ने कई तेल के लो स्मोकिंग पॉइंट और हाई स्मोकिंग पॉइंट के बारे में भी बताया है।
ये हैं हाई तापमान पर पकाए जाने वाले तेल
हाई स्मोकिंग पॉइंट ऑयल यानी वह तेल जिसका उपयोग 400 डिग्री फारेनहाइट या इससे ज्यादा तापमान तक की चीजें फ्राई करने के लिए किया जा सकता है।
- एवोकाडो ऑयल
- कैनोला ऑयल
- कॉर्न ऑयल
- पीनट्स ऑयल
- लो स्मोकिंग पॉइंट ऑयल
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ये हैं कम तापमान पर पकाए जाने वाले तेल
वह ऑयल जिन्हें कम 225 डिग्री फारेनहाइट तक या उससे कम तापमान पर ही पकाया जाना चाहिए।
- फ्लैक्स सीड्स ऑयल
- पंपकिन सीड्स ऑयल
- वॉलनट्स ऑयल
इनमें से किसी भी तेल का उपयोग आप भोजन पकाने के लिए नहीं कर सकते। बल्कि आप इनका उपयोग सलाद पर ड्रेसिंग के तौर पर यह गार्निशिंग के तौर पर भी कर सकते हैं।