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Sleep Disorders: 64% भारतीयों ने माना नहीं ले पाते पूरी नींद, डॉक्‍टर ने दिया ये जवाब

नींद का समय पर आना और नींद का पूरा होना बेहद जरूरी है। कभी – कभी किसी वजह से नींद में खलल पड़ सकता है और आपको सोने में देरी भी हो सकती है। जिसकी भरपाई आप एक या दो दिन बाद कर सकते हैं। लेकिन अगर यही नींद ना आने की दिक्कत रोज होने लगे, तो यह कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है। आज से कुछ समय पहले तक नींद से जुड़ी समस्याएं लोगों को सुनाई तक नहीं देती थी। लेकिन आज के वक्त में लगभग हर तीसरा या चौथा व्यक्ति नींद न पूरी होने की शिकायत करता नजर आता है। नींद पूरी ना होने की वजह से ना केवल आपका वजन बढ़ता है। बल्कि यह कई बीमारियों की वजह भी बन जाता है।

हाल ही में ETIMES के द्वारा कराए गए पोल्स से भी पता चलता है कि भारतीयों को नींद ना पूरे होने की दिक्कत बढ़ती जा रही है। इस पोल के मुताबिक 64 प्रतिशत लोगों को लगता है कि वह अच्छी तरह से सो नहीं पाए हैं। इसके अलावा 51 प्रतिशत लोग एक दिन में महज 4 से 6 घंटे ही सोते हैं। यही नहीं 10 प्रतिशत ऐसे भी लोग हैं जो दिनभर में 4 घंटे की नींद लेते हैं।

​स्लीप डिसऑर्डर पर विशेषज्ञ की राय

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में कंसलटेंट और डॉक्टर संजीव बाधवार का कहना है कि बीते कुछ समय से नींद से जुड़ी समस्याओं के मामले भले ही कम देखे गए हैं। लेकिन असल मायनों में बीते एक साल में इस तरह के मामलों में तेज वृद्धि देखी गई है। डॉक्टर का कहना है कि वह स्लीप डिसऑर्डर से जुड़ी हर तरह की दिक्कतों से जूझते हुए लोगों को देख रहे हैं। इनमें चाहे स्लीप डेप्रिवेशन, स्लीप फ्रेगमेंटेशन, स्लीप एपनिया या नींद आने की शुरुआत में आने वाली दिक्कत हो।

यही नहीं डॉक्टर का कहना है कि अब बच्चों में भी स्लीप एपनिया के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आंकड़ों की माने तो देश में 15 प्रतिशत वयस्कों को स्लीप एपनिया की दिक्कत है। वहीं 3.4 से लेकर 5 प्रतिशत तक बच्चों में भी स्लीप एपनिया की दिक्कत देखी जा रही है।

​कैसे करें स्लीप डिसऑर्डर की पहचान

यह सवाल ही अक्सर बहुत लोगों के जेहन में आता है कि आखिर किस तरह पता लगाया जा सकता है कि आपको स्लीप डिसऑर्डर है या नहीं। इस पर डॉक्टर बाधवार का कहना है कि स्लीप डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए रोगी से कुछ सवाल जवाब किए जाते हैं, जैसे स्टॉप बैंग प्रश्नावली और स्लीपिनेस स्केल नैदानिक परीक्षण का सहारा लिया जाता है। इसके बाद रोगी की कुछ जांच भी कराई जाती है, जिसमें ब्लड टेस्ट, एक्सरे, स्कैन आदि कराए जाते हैं।

इसके अलावा स्लीप डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए स्लीप स्टडी यानी पोलीसोम्नोग्राफी का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें व्यक्ति को नींद कितनी गहरी आई इसका पता चल जाता है। इसमें व्यक्ति को सोते समय कब सांस लेने में दिक्कत हुई, सोते समय ऑक्सीजन का स्तर क्या था। इन्हीं के जरिए पता चलता है कि व्यक्ति स्लीप एपनिया है या नहीं। या फिर अगर स्लीप एपनिया है तो उसकी स्थिति साधारण, गंभीर है या ठीक ठाक है। इसके अलावा स्लीप एंडोस्कोपी के जरिए भी नींद से जुड़ी समस्याओं का पता लगाया जाता है।

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​कौन से लक्षण दिखाई देते हैं

परीक्षण के अलावा अगर किसी को स्लीप डिसऑर्डर की समस्या हो तो इनमें कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं जैसे दिन में अधिक नींद आना, खर्राटे लेना, नींद में डिस्टर्बेंस, थकान होना, सोते समय सांस लेने में दिक्कत होना, तेज खर्राटे लेना, दिन में थका हुआ महसूस करना, सुबह के समय सिरदर्द, इरिटेट होना, मूड स्विंग्स, मुंह सूखना और कार्डियो से जुड़ी एक्टिविटी करने में दिक्कत आना। यह सभी स्लीप एपनिया के लक्षण हैं, ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

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​याददाश्त कमजोर होना बड़ी निशानी

विशेषज्ञों का कहना है कि स्लीप डेप्रिवेशन होने के साइड इफेक्ट लंबे समय तक कई तरह से देखने को मिल सकते हैं। इसकी वजह से मेंटल एबिलिटी, शारीरिक स्वास्थ्य, याददाश्त कमजोर होना, मूड स्विंग्स, सोचने में दिक्कत आना, कंसन्ट्रेट ना कर पाना, ड्राइव करते समय एक्सीडेंट होने का खतरा, इम्यूनिटी कमजोर होना, डायबिटीज, बीपी और संबंध स्थापित करते समय दिक्कत आने लगती है।

​साधारण खर्राटे और स्लीप एपनिया में फर्क

नींद के दौरान तेज खर्राटे लेना या सोते समय सीटी की आवाज स्लीप एपनिया हो भी सकता है और नहीं भी। क्योंकि खर्राटे लेने के दौरान नींद में बाधा उत्पन्न नहीं होती। ऐसे में ना तो व्यक्ति दिनभर थकावट महसूस होती है और ना ही चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में अगर स्लीप एपनिया का पता लगाना है तो इसका एकमात्र तरीका है कि आप डॉक्टर के पास जाकर जांच कराएं।

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