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Darul Uloom Haqqania Madrassa where Afghanistan New Taliban Leaders Went to School

पाकिस्तान के सबसे बड़े और सबसे पुराने मदरसे में से एक दारुल उलूम हक्कानिया मदरसा ने दुनिया के किसी भी स्कूल की तुलना में अधिक तालिबान नेताओं को शिक्षित किया है। अब इस मदरसे के एल्युमिनी अफगानिस्तान में तालिबान सरकार में टॉप पोस्ट्स पर हैं। इसी मदरसे के पूर्व छात्रों ने तालिबान आंदोलन की स्थापना की और 1990 के दशक में अफगानिस्तान पर शासन किया। मदरसे के चांसलर रहे समीउल हक में 2018 में इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई थी। उन्हें ‘तालिबान का पिता’ के नाम से जाता था।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना अक्सर अपने नेताओं का इस्तेमाल तालिबान को प्रभावित करने के लिए करती है। इस स्कूल के आलोचक और जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट्स इसे जिहाद का यूनिवर्सिटी कहते हैं और पूरे क्षेत्र में हिंसा फैलाने और हिंसा फैलाने में मदद करने का आरोप लगाते हैं। कइयों को लगता है कि ये मदरसा पाकिस्तान में चरमपंथ को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि मदरसे का दावा है कि वह बदल गया है। न्यू यॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि मदरसे ने कहा है कि तालिबान को यह बताने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए कि वह पहले जैसे नहीं हैं और अब बदल चुके हैं।

मदरसे के लिए सम्मान की बात है कि यहां के ग्रेजुएट अब अफगानिस्तान चला रहे

तालिबान सरकार में गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी भी दारुल उलूम हक्कानिया मदरसे से पढ़े हुए हैं। अमेरिकी सरकार ने सिराजुद्दीन पर 37.5 करोड़ रुपये का इनाम रखा हुआ है। सिराजुद्दीन के साथ ही विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बकी हक्कानी भी इसी मदरसे के एल्युमिनी हैं। मदरसे का कहना है कि न्याय मंत्री, जल और बिजली मंत्रालय सहित कई तरह के गवर्नर, सैन्य कमांडर और जज भी हक्कानिया मदरसा से शिक्षा ली है।

मदरसे के वाइस चांसलर रशीदुल हक़ सामी ने न्यू यॉर्क टाइम्स से बातचीत करते हुए कहा है कि हमें गर्व है कि अफगानिस्तान में हमारे छात्रों ने पहले सोवियत संघ को तोड़ा और अब अमेरिका को लौटा दिया है। यह मदरसे के लिए एक सम्मान की बात है कि यहां के ग्रेजुएट अब मंत्री हैं और तालिबान सरकार में टॉप पोस्ट्स पर हैं।

दुनिया के पास तालिबान पर भरोसा के अलावा कोई विकल्प नहीं

1980 और 1990 के दशक में हक्कानिया में पढ़ने वाले छात्रों ने न्यू यॉर्क टाइम्स से बातचीत में कहा है कि उन्हें कोई मिलिट्री ट्रेनिंग नहीं मिली थी। कुछ छात्रों ने कहा है कि शिक्षक अक्सर जिहाद पर खुलकर चर्चा करते हैं और छात्रों को अफगानिस्तान के विद्रोह में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

हालांकि सामी का कहना है कि छात्रों को न तो युद्ध के लिए ट्रेनिंग दिया गया और न ही अफगानिस्तान में लड़ने के लिए बाध्य किया गया। अफगानिस्तान के ताजा हालात को लेकर उन्होंने कहा कि दुनिया के पास तालिबान की शासन करने की क्षमता पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान को देश चलाने का मौका देना चाहिए। अगर तालिबान को काम करने की इजाजत नहीं दी गई, तो अफगानिस्तान में एक नया गृह युद्ध होगा और यह पूरे क्षेत्र को प्रभावित करेगा।

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